
नयी नयी सी है हवा ,
नया नया है ये शौंक
फूलो की जगह
अब जुबान से झड़ती है गालियां !
तुझ से जयादा हूँ मैं काबिल ,
आती है मुझे बेहिसाब गालिया !
कभी शर्मा हया से झुकती थी जो आंखे ,
आज उठ कर बेशरम सी हो गयी !
सलीको से जो उठाते थे कदम
अब नशो में झूमते है
नए दौर की नयी बाते
अब बदसलूकी पे बजती है तालिया !
कभी जुबा से ऊँचा नहीं बोला था कोई ,
दिल दुःख न जाये अपनों का कही
छुपा लेते थे सीनो में दर्द अपना !
अब अपनों को ही कुछ सिक्को के लिए ,
बेच देते है सरेआम बाज़ारो मैं,नशे में खींच लेते है
माँ के कानो की भी बालिया|
-Maya.
वाह। बिल्कुल सच बोला। पता नहीं क्यूँ आजकल के बच्चे गालियाँ बोलने में गरवान्वित महसूस करते हैं। शर्मनाक है ये।
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So true🙏
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Cant it possible to reflect the positive side of aaj ka daur?
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I could but when I’m revisiting the same scenario of people being highly abusive, and that too on a daily basis, how could I bring out something positive out of that?
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