
कितनी सुनी-अनसुनी कहानियाँ,
मिलना -बिछड़ना रूठना -मनाना
फिर सर रख के माँ के कंधो पे सो जाना ,
कुछ अंजानी और कुछ जानी पहचानी
प्रेम कहानियां
कुछ कहावते , कुछ किस्से
‘ढाई आखर प्रेम के पढ़े तो पंडित हो जाये ‘
पर फिर भी हम कुछ समझ नहीं पाए
ऐसे ही कुछ सकुचाये और शर्माए ,
हम अपने पिया के घर आये
बीते बरस बीत गयी जवानियाँ ,
फिर भी रही अनछुई सी मन में
कही कुछ निशानियां
वो गुस्ताखियाँ वो शौंकियाँ ,
वही रूठना -मनाना .तब लगा ऐसे ही सब पल तो हमने संग पिया के बिताये
अब समझ आया , क्यों कहते है ,
‘ढाई आखर प्रेम के पढ़े तो पंडित हो जाये ‘
-Maya.